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प्रखर बौद्ध विद्वान “अयोति थास”
(20 मई, 1845 – 05 मई, 1914)
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प्रखर बौद्ध विद्वान अयोति थास जी का जन्म चेन्नई के रोयापेट्टा में एक बहुजन परिवार में 20 मई, 1845 को हुआ था। वह एक प्रसिद्ध चिकित्सक और तमिल विद्वान थे, जिन्हें ज्योतिष और ताड़ के पत्तों की पांडुलिपि पढ़ने के पारंपरिक ज्ञान में विद्वतापूर्ण विशेषज्ञता हासिल थी। वर्ष 1870 में, अयोति थास जी
ने उथगमंडलम में, जहां उनका पालन-पोषण हुआ था, अद्वैधानंद सभा की स्थापना की। (यह उनके जीवन में पहली संस्था निर्माण की गतिविधि मानी जाती है) वर्ष 1891 में उन्होंने द्रविड़ महाजन सभा नाम के एक संगठन की स्थापना की और 01 दिसंबर, 1891 को उन्होंने नीलगिरी जिले के ऊटी में इस महाजन सभा की ओर से पहला सम्मेलन आयोजित किया, उस सम्मेलन में उन्होंने दस प्रस्ताव पारित किए गए थे, जिसमें अछूतों को परिया कहकर अपमानित करने वालों को दंडित करने के लिए एक आपराधिक कानून बनाने, अलग स्कूल बनाने और अछूत बच्चों के लिए मैट्रिक की शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति प्रदान करने तथा जाति व्यवस्था को खत्म करने के लिए दलितों को बौद्ध धर्म अपनाने के लिए प्रेरित करना प्रमुख था। इस उद्देश्य से उन्होंने तमिल साहित्य और तमिल की लोक परम्पराओं की सहायता से एक वैकल्पिक इतिहास की रचना की। उन्होंने प्रदर्शित किया कि अछूत ही मूल निवासी बौद्ध थे और उन पर अस्पृश्यता थोपी गई थी। उन्होंने जातिवादी अमानवीय लोगों द्वारा प्रचलित की गयी रूढ़िवादी प्रथाओं का विरोध खुलकर किया था। उन्होंने जोर देकर कहा कि बौद्ध धम्म ही भारत के इतिहास में पहला मानवीय आंदोलन था। इसलिए उन्होंने दलितों से अपने मूल धम्म, बौद्ध धम्म की ओर लौट आने का आह्वान किया। वर्ष 1898 में, अयोति थास ने पंचमा स्कूल के हेड मास्टर कृष्णासामी के साथ सीलोन (श्री लंका) का दौरा किया और वहां उन्होंने खुद को बौद्ध धम्म में परिवर्तित कराया। वर्ष 1898 में कर्नल (ओल्काट) ने मद्रास के पंचमा समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में पंडित अयोति थास को सीलोन ले गए थे, जिन्हें महायाजक सुमंगला द्वारा बौद्ध धम्म में प्रवेश दिया गया और इस तरह दक्षिण भारत के बौद्ध प्रचार के इतिहास में बहुजनों द्वारा एक नए युग की शुरुआत की गई। बौद्ध धम्म अपनाने के बाद उन्होंने जल्द ही वर्ष 1898 में रॉयपेट्टा, मद्रास में ‘द शाक्य बुद्धिस्ट सोसाइटी’ की स्थापना की और वर्ष 1907 में उन्होंने इस सोसाइटी के एक अंग के रूप में अपनी पत्रिका “ओरु पैसा तमिलन” की शुरूआत की तथा वर्ष 1907 से लेकर 05 मई, 1914 तक उनकी सभी सामाजिक और धाम्मिक गतिविधियों को इस पत्रिका में दर्ज किया गया था। द शाक्य बुद्धिस्ट सोसाइटी ने प्रत्येक शाम को ‘बुद्ध धम्म पीरसंगम’ (बौद्ध धम्म के सिद्धांतों का प्रचार) बौद्ध धम्म पर नियमित व्याख्यान आयोजित करना शुरू कर दिया। यह व्याख्यान आधी रात तक चलते थे।इससे कई बुद्धिजीवियों ने अयोति थास के नेतृत्व में बौद्ध धम्म के सिद्धांतों को समाज फैलाने के लिए खुद को समर्पित कर दिया था और लोग बौद्ध अनुष्ठानों, समारोहों और उत्सवों में बड़ी संख्या में लेने लगे। इससे बहुजनों का सांस्कृतिक जीवन बौद्ध होने लगा और जन्म, विवाह तथा अंत्येष्टि के जीवन की घटनाओं में बौद्ध रीति-रिवाजों का प्रचलन प्रारंभ होने लगा साथ ही बौद्ध धम्म अपनाने वालों के नाम भी तमिलन पत्रिका में 24 अगस्त, 1912 को प्रकाशित हुए थे। अयोति थास ने बहुजनों से उस दौर में प्रबल आह्वान किया कि वह अपने धर्म को बौद्ध धम्म के रूप में अभिलेखों-दस्तावेजों में दर्ज करायें। आज ही के दिन 05 मई, 1914 को दक्षिण भारत के महान बौद्ध प्रचारक व बुद्ध धम्म की आधार भूमि निर्मित करने वाले महान विचारक अयोति थास जी का निधन हो गया था।
जिस तरह महाराष्ट्र में बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी की वैचारिकी की पृष्ठभूमि एवं आधार महामना ज्योतिबा फुले जी के विचारों ने खड़ा किया था, उसी तरह पेरियार ई.वी. रामासामी जी नायकर की वैचारिकी की पृष्ठभूमि एवं आधार का निर्माण तमिलनाडु में अयोति थास जी ने ही किया था। अंतर है तो सिर्फ सामाजिक पृष्ठभूमि का, जहां महामना ज्योतिबा फुले जी बहुजन समाज की माली जाति (सछूत) में जन्म लिये, वहीं पंडित अयोति थास जी बहुजन समाज की परियाह जाति(अछूत) में जन्में थे। अयोति थास जी ने बोधिसत्व बाबा साहब डॉ.भीमराव आंबेडकर जी द्वारा बौद्ध धम्म ग्रहण करने से करीब 50 वर्ष पूर्व बौद्ध धम्म ग्रहण कर लिया था। वर्ष 1901 की पहली जनगणना के समय अयोथी थास ने बहुजनों से आह्वान किया था कि वह खुद को जातिविहीन आदि द्रविड़ के रूप में जनगणना में दर्ज कराएं। दस वर्षों बाद वर्ष 1911 की जनगणना के समय उन्होंने पुन: इस मांग और आह्वान को बहुजनों और ब्रिटिश सरकार के मध्य दोहराया। इसके अतिरिक्त उन्होंने तत्कालीन ब्रिटिश सरकार से भी यह मांग किया कि वह बहुजनों को मूल बौद्धिस्ट के रूप में ही सूचीबद्ध करें, भले ही ‘अछूत’ अपनी उप-जातियां भी जनगणना में दर्ज काराएं। अयोति थास जी किसी भी रूप में आदि द्रविड़ों को बौद्ध से अलग किसी अन्य प्रचलित धर्म का, मानने के लिए तैयार नहीं थे। बहुजन मुक्ति आंदोलन के प्रणेता अयोति थास जी ने तत्कालीन ब्रिटिश सत्ता के आगमन से पैदा हुए नए अवसरों का भी समाज हित में भरपूर इस्तेमाल किया और न्याय, समता, अवसर, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व पर आधारित राष्ट्र निर्माण के लिए अपना पूरा जीवन अर्पित कर दिया।
आधुनिक बुद्धिज़्म के प्रवर्तक, ‘बुद्धिज़्म सामाजिक राजनैतिक क्रांति का मानवीय एवं नैतिक दर्शन है, पूजा पद्धति नही’, का सम्यक उदघोष करने वाले, अनेको विहारों-शिक्षण एवं प्रशिक्षण शालाओं-धम्म संस्थाओ के निर्माता, ‘बहुजन ही बुद्ध एवं असोक के बुद्धिस्ट वंशज हैं’-जैसी अनेक युगांतकारी प्रतिस्थापनायें करने वाले, नागपुर, हैदराबाद, बंगलौर, पूना अफ्रीका, बर्मा आदि में धम्म का सम्यक प्रचार-प्रसार व अपने पुत्र राजाराम को अफ्रीका में धम्म-प्रचार के लिए भेजने वाले, महान बुद्धिवादी, वैज्ञानिक, तार्किक, द्रविड़ियन आन्दोलन के जनक, महिलाओं के लिए सम्मान-सम्पति के अधिकार के प्रबल समर्थक, अनागरिक धम्मपाल, प्रोफेसर नरसू, मुरुगेसम, सी.गुरुसामी, स्वनेश्वरी अम्माल, रत्तामाली श्रीनिवासन, अन्नादुरई, पेरियार के गुरु, पहली आधुनिक बौद्ध संस्था-‘शाक्य बुद्धिस्ट सोसाइटी’ (1898) के संस्थापक, पाली, अंग्रेजी, तमिल तथा संस्कृत के महान ज्ञाता, सिद्ध चिकित्सा के विशेषज्ञ, उच्च-कोटि के दार्शनिक, मौलिक-चिंतन एवं लेखन के धनी, निर्भीक व निष्पक्ष पत्रकार (‘तमिलान’- वर्ष 1907 से 1914 तक), नीलगिरी हिल्स में आदिवासी समाज के संगठन कर्ता, महान शिक्षाविद, अनेकों स्कूलों के निर्माता, अद्भुत संगठनकर्ता, महान सामाजिक क्रान्तिकारी अयोति थास जी के स्मृति दिवस 05 मई पर कृतज्ञतापूर्ण नमन
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